कोरबा वन मंडल ने मादा अजगर और उसके अंडो के लिए बनाया घर
कोरबा। कोरबा वन मंडल में 67 दिनों के इंतजार के बाद अंडे से निकले अजगर के 11 बच्चे। कोरबा जिले का यह पहला मामला है जहां इस तरह अजगर की देखभाल की गई और अंडों से बच्चे निकलने तक उसे आश्रय दिया गया। दरअसल, 27 मई को कोरबा मुख्यालय से 35 किमी दूर सोहगपुर के गांव पंचपेड़ी के लोगों ने वन विभाग को बताया कि उनके इलाके में एक मादा अजगर अपने 15 अंडों के साथ देखी गई है, तब वहां से मादा अजगर और उसके अंडों का रेस्क्यू कर कोरबा वन मंडल लाया गया था।


यहां वन मंडल के अधिकारियों से बातचीत कर कोरबा वन मंडल में ही अजगर और उसके अंडों को रखने का फैसला किया गया. मादा अजगर और उसके अंडों के देखरेख की जिम्मेवारी स्नेक रेस्क्यू टीम प्रमुख और वन विभाग सदस्य जितेंद्र सारथी को सौंपी गई। डीएफओ प्रियंका पांडेय के निर्देश पर अजगर के लिए वन मंडल में एक घर बनाया गया. कमरे को प्राकृतिक रूप देने के लिए मिट्टी रखी गई। अजगर के लिए एक बड़े से घड़े में पानी रखा गया ताकि प्यास लगने पर अपनी प्यास बुझा सके। अंडे सही रहें इसके लिए 100 वॉट का बल्ब लगाकर कमरे का तापमान सेट किया गया, फिर अंडों के पास अजगर को छोड़ दिया गया. मादा अजगर अपने अंडों को सुरक्षा घेरे में लेकर बैठ गई और सेने लगी।अजगर को जंगल का माहौल देने के लिए उसके कमरे को बंद कर दिया जाता था। हर दिन सुबह-शाम दरवाजा खोल कर देखा जाता था कि मादा अजगर और उसके अंडे सुरक्षित हैं कि नहीं. इसी तरह जितेंद्र सारथी और उनकी टीम लगातार देखरेख में लगे रहे। कोरबा डीएफओ प्रियंका पांडेय भी खुद आकर अजगर और उसके अंडों का जायजा लेती रहीं। 4 दिन बाद अजगर को खाने के लिए चूजा दिया गया. दूसरे दिन कमरे में चूजा नहीं दिखा तो माना गया कि वह अजगर का निवाला बन चुका है।
ऐसे ही सुबह शाम लागातार 67 दिन तक उस अजगर की देखभाल की गई। इस दौरान अजगर ने 11 मुर्गियों को अपना निवाला बनाया. 67 दिन के दौरान ही मादा अजगर ने अपनी केचुली भी छोड़ी और पानी से भरे बर्तन में आराम भी किया । उसकी सुरक्षा में कोई कमी न हो, उसके लिए वन मंडल कोरबा के एसडीओ आशीष खेलवार, कोरबा रेंजर सियाराम कर्माकर की बड़ी भूमिका रही. स्नेक रेस्क्यू टीम के प्रमुख जितेंद्र सारथी अपनी टीम के राजू बर्मन, कुलदीप राठौर, सुनील निर्मलकर, मोंटू, शाहिद, राकेश, अनुज, पवन अरुण और सौरव के साथ 67 दिन तक अजगर और उसके अंडों की देखभाल में लगे रहे.फिर वह दिन आ गया जिसका लंबे समय से कोरबा डीएफओ प्रियंका पांडेय को इंतजार था. अजगर के बच्चे अंडों से बाहर झांकने लगे । सुबह तक 15 अंडों से 11 बच्चे बाहर आ चुके थे, 4 अंडे विकसित नहीं हो पाए थे, अब जल्द से जल्द मादा अजगर के साथ बच्चों को जंगल में सुरक्षित छोड़ने की योजना बनाई गई । सावधानी से मादा अजगर को काबू में करते हुए सभी 11 बच्चों को एक कार्टून में रखा गया और दूर जंगल में छोड़ दिया गया।