बढ़ती आबादी के साथ जगह की भारी कमी झेलते हांगकांग में शव को दफनाने के लिए भी लॉटरी सिस्टम काम करता है. हर 6 साल में पुराने शव हटाकर नए शवों को जगह मिलती है.कोरोना के दौरान मची भीषण तबाही के बीच कई देशों में शवों को दफनाने के लिए जगह कम पड़ने की खबरें आईं. ये भी सुर्खियों में रहा कि कैसे पुरानी कब्रों को हटाकर उनकी जगह नए शव रखे जा रहे हैं. इसपर काफी हल्ला मचा था लेकिन पुराने शवों को हटाकर नए शवों को जगह देने का चलन नया नहीं, बल्कि कई विकसित देश जगह की कमी के चलते पहले से ये कर रहे हैं. वहां कुछ सालों के लिए दफनाने की जगह किराए पर मिलती है. मियाद खत्म होते ही वहां वेटिंग में चल रहा दूसरा शव आ जाता है.
हांगकांग | लगभग सभी देशों में शव संस्कार से जुड़ी कई मान्यताएं रही हैं, जैसे कि शव को दफनाने के बाद उसे छेड़ना नहीं चाहिए. पुरानी सोच के मुताबिक, इससे किसी तरह का खतरा आने का डर रहता है. हालांकि अब अंतिम संस्कार से जुड़े रस्मोरिवाज बदल सकते हैं. आबादी बढ़ने और जगह की कमी होने के कारण कई देशों में ये बदलाव दिख रहा है. जैसे हांगकांग समेत कई देश जैसे सिंगापुर, येरूशलम, सिडनी, वेंकूवर और इस्तांबुल में शवों को दफनाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं.
हांगकांग इसमें सबसे ऊपर है. साल 1970 में ही प्रॉपर्टी की कीमतें वहां पर आसमान छूने लगीं. इसी दौरान लोगों के रहने के लिए जमीन के छोटे टुकड़े की अनुपलब्धता को देखते हुए वहां की सरकार ने तय किया कि देश में नए कब्रिस्तान नहीं बनाए जाएंगे. साथ ही आदेश दिया गया कि बनी-बनाई कब्रों को खोदकर हर 6 साल में शव निकालकर उन्हें जला दिया जाए ताकि नए आने वाले शवों के लिए जगह बन सके.अगर कोई मरने वाला काफी किस्मतवाला हो और किसी ऐसे चर्च का सदस्य हो, जहां मृतकों को दफनाने की जगह बाकी हो तो वो जगह पा सकता है. लेकिन इसके लिए भी कोई छोटी-मोटी रकम नहीं, बल्कि इसके लिए मृतक के परिजनों को 2 करोड़ 83 लाख रुपए खर्च करने होंगे. तो जाहिर है हांगकांग में न तो जीते- जी बड़ी आबादी के पास घर है और न मौत के बाद वे आराम कर सकते हैं.


यही कारण है कि बीते कुछ सालों से यहां एक अलग ही तरीका अपनाया जा रहा है. परिजन मृतक को दफनाने की बजाए सीधे जला देते हैं और अस्थियां जमा करके किसी सुरक्षित जगह या बैंक के लॉकर में रखवा देते हैं. वे इंतजार करते हैं कि अगर कभी वे जमीन खरीद सके या कब्रिस्तान खाली हुए तो वे अस्थियों को ही जमा करके सारी प्रक्रिया कर देंगे.
परिजन मृतकों की अस्थियां एक जार में जमा कर जाते हैं कि जब भी नंबर आए, उस राख को ही दफनाया जा सके. रॉयटर्स में इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट आई है, जिसमें बताया गया है कि कैसे यहां दफनाने के लिए भी लॉटरी सिस्टम काम करता है. अगर कोई अस्थियों को रखने का भी इंतजार न कर सके तो उसके लिए भी बंदोबस्त है. उसे ज्यादा नहीं, बस 94 लाख रुपए जमा कराने होंगे, जिसके बदले उसे A4 साइज (एक जूते के डिब्बे जितना बड़ा) की जमीन दी जाएगी, जिसमें केवल एक जार दफनाया जा सके.