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फादर्स डे स्पेशल : आखिर क्यों है 364 सदस्यों के पिता का नाम सुधीर भाई ?

 किसी को कूड़ेदान से तो किसी को बेड़ियों से आजाद कराया इसीलिए है उज्जैन के आश्रम के सदस्यों के आधार कार्ड पर पिता की जगह है संचालक सुधीरभाई का नाम

उज्जैन |फादर्स डे पर मिलिए उज्जैन के सुधीर भाई से। सुधीर भाई सेवा धाम आश्रम के संचालक हैं और 364 सदस्यों को पिता की तरह पाल रहे हैं। इन सभी लोगों के आधार और वोटर आईडी पर पिता की जगह C/o में सुधीर भाई का नाम दर्ज है। इनमें बच्चे, बूढ़े, जवान सब हैं। महिलाएं भी हैं। कोई इन्हें कूड़ेदान में मिला था तो कोई जंंगल में। कोई लावारिस घूमते मिला तो किसी को बेड़ियों से आजाद कराकर अपने पास लाए। इनमें 90% से ज्यादा दिव्यांग हैं। यहां रहने वाले लोग सुधीर भाई को पापा की तरह बुलाते हैं। सुधीर भाई ने ऐसे कई ऐसे बच्चों को अपनाया जो नशे का शिकार थे। इसके अलावा समाज द्वारा छोड़ देने वाले लोगों को अपनाकर मुख्यधारा से जोड़कर नया जीवन दिया।

सुधीर भाई का कहना है, यह मेरा परिवार है, यह मेरा समाज है और यही मेरा कुटुम्ब है। ऐसा परिवार, जहां हर वर्ग के लोग एक डोर में बंधे हैं। यहां किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता। यहां रहने वाले लोगों को चाय, नाश्ता, भोजन, दूध, फल आदि दिया जाता है। वहीं, उनकी पत्नी कांताजी के साथ बेटी मोनिका व गौरी भी सहयोग करती हैं।

20 से अधिक प्रदेशों के बच्चों को अपनाया

सेवा धाम आश्रम सेवा के लिए जाना जाता है। यहां कई बच्चे अलग-अलग प्रदेशों से लाए गए हैं, जिनका कोई नहीं था। ऐसे लोग जिनके माता-पिता नहीं हैं, घर से निकाले गए, बेसहारा, झुग्गी, लावारिस तो किसी को दिव्यांग होने के कारण परिवार वालों ने छोड़ दिया। उनके पिता के रूप में सुधीर भाई ने इन बच्चों को अपनाया। यही कारण है कि सभी सुधीर भाई को पिता का दर्जा देते हैं। मध्यप्रदेश ही नहीं, भारत के 20 से अधिक प्रदेशों से कई बाल कल्याण समिति और संस्थाएं बच्चों को सेवाधाम भेजती हैं, जिन्हें सुधीर भाई अपनाकर अपना नाम देते हैं।

50 से अधिक बेटे-बेटियों का विवाह कर चुके हैं

यहां बच्चे श्रमदान भी करते हैं। यहां बच्चे हस्तशिल्प, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई के साथ कम्प्यूटर व कई प्रशिक्षणों में निपुण हो रहे हैं। सुधीर भाई ने 50 से अधिक बेटे और बेटियों का विवाह भी कराया है। यह कई बच्चों के नाना-दादा बन चुके है। 17 साल की उम्र में सुधीर भाई ने दो बेटियों का कन्यादान किया, जो नारी निकेतन उज्जैन की बेटियां थीं। अब उनके बच्चे भी सेवाधाम आते हैं। वह भी उन्हें नाना के रूप में सम्मान देते हैं।

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सेवाधाम आश्रम में बच्चे इस तरह खेलते हैं।
                                               सेवाधाम आश्रम में बच्चे इस तरह खेलते हैं।

10 वर्षों से जंजीरों में जकड़ा था, आज बन गया गो सेवक

यश (परिवर्तित नाम) मानसिक स्थिति ठीक न होने से ग्राम सिरिया तहसील नलखेडा में 10 वर्षों तक जंजीरों में जकड़ा था। 2007 में सुधीर भाई ने उसे मुक्ति दिलाई। 14 वर्ष से वह सेवाधाम में ही रहता है। यहां गोशाला में प्रथम गो सेवक के रूप में जीवनयापन कर रहा है।

जिसे जंगल में फेंककर भाग गए थे, वह डॉक्टर बनना चाहती है

आश्रम में रहने वाली बालिका अवंति (परिवर्तित नाम) जिसे वर्ष 2006 में जन्म देने के बाद जंगल में फेंक गया था। बाद में सेवाधाम आश्रम ने बच्ची की परवरिश की। बालिका 15 वर्ष की हो चुकी है। कक्षा छठवीं में पढ़ाई कर रही है। आश्रम में रहते हुए खेलकूद व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेती है। उसका मन सेवा में रम गया है। वह आगे चलकर डाॅक्टर बनना चाहती है।

बुजुर्ग हों या बच्चे, सभी मुझे पिता मानते हैं

सुधीर भाई का कहना है कि हर कोई पिता अपने बच्चों को उनकी कमियों के साथ अपनाए। उनके अंदर ऐसा सुनहरा भविष्य देखे, जो राष्ट्र निर्माण के लिए इंगित करता हो। सेवाधाम में बच्चों और बुजुर्गों के साथ प्रताड़ित महिलाओं को स्वच्छ वातावरण मिले। बच्चों को यह महसूस ना हो कि उनके मां-बाप नहीं हैं, इसलिए आश्रम में रहने वाले हैं। 364 से अधिक बच्चों और बुजुर्गों को पिता के रूप में मैंने अपना नाम सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज करवाया है। मेरा प्रयास है, यहां रहने वाले लोग पिछली जिंदगी भूल कर नई जिंदगी की शुरुआत करें।