सांस लेने में थोड़ी तकलीफ है तो पेट के बल 45 मिनट लेेट जाएं, मिलेगी थोड़ी राहत
रायपुर |राजधानी समेत प्रदेश में कोरोना के बढ़ते केस की वजह से अस्पतालों में वेंटीलेटर व ऑक्सीजन की कमी हो गई है। यही नहीं, ज्यादातर लोग कोरोना की आशंका के बीच अचानक सांस लेने में तकलीफ महसूस करने लगे हैं।
अभी कोरोना के इलाज में लगे राजधानी के कुछ सीनियर डाक्टरों ने भास्कर को बताया कि इन हालात में प्रोन पोजीशन ऑक्सीजनेशन सिस्टम सांस लेने में तकलीफ वाले मरीजों को खासी राहत दे सकता है। इस सिस्टम में किसी मरीज को 45 मिनट पेट के बल लिटाते हैं। ऐसा करने से उनके फेफड़े ज्यादा एक्टिव हो जाते हैं। यह तकनीक उन लोगों पर कारगर है, जिनकी तकलीफ कम है।

विशेषज्ञों का कहना है कि प्रोन पोजीशन ऑक्सीजनेशन सिस्टम वेंटीलेटर की तरह कारगर है। इससे अस्पतालों में वेंटीलेटर व ऑक्सीजन की कमी की समस्या भी दूर की जा सकती है। दरअसल इन दिनाें राजधानी के सरकारी व निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड व वेंटीलेटर फुल है। इस कारण विशेषज्ञों ने प्रोन पोजीशन (छाती के बल लिटाना) को अपनाने का निर्णय लिया है। सरकारी व कुछ निजी अस्पतालों में इस सिस्टम से मरीजों का इलाज भी चल रहा है।
एसीआई में कार्डियो थोरेसिक एंड वेस्कुलर सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ. कृष्णकांत साहू के अनुसार छाती के बल लिटाने से छाती का फ्लूड नीचे आ जाता है। इससे ऊपर का हिस्सा खाली हो जाता है और सांस लेने की जगह मिल जाती है। फेफड़े भी सक्रिय हो जाता है।

यह वेंटीलेटर में जाने की पहली की स्थिति है। अगर प्रोन पोजीशन में मरीज को फायदा मिलता है तो इसे कंटीन्यू करते हैं। कुछ मरीजों को इसका फायदा नहीं होने पर वेंटीलेटर पर रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। फिर भी प्रोन पोजीशन के रिजल्ट अच्छे हैं। चार साल पहले जब प्रदेश में स्वाइन फ्लू के लगातार मरीज मिल रहे थे, तब प्रोन पोजीशन सिस्टम से मरीजों का इलाज किया जा चुका है। अंबेडकर के अलावा निजी अस्पतालों में इसका अच्छा रिजल्ट भी रहा है। सांस लेने में तकलीफ को प्रोन पोजीशन से दूर किया जा सकता है।
इस तरह लें प्रोन-पोजीशन, खून का संचार भी हो जाता है अच्छा
प्रोन पोजीशन में तकिए का उपयोग किया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार गर्दन के नीचे एक तकिया, पेट-घुटनों के नीचे दो व पंजों के नीचे एक तकिए लगाते हैं। हर 7 से 8 घंटे में 45 मिनट तक ऐसा करने से मरीज को लाभ होता है। यही नहीं पेट के बल लिटाकर हाथों को कमर के पास समानांतर भी रखा जा सकता है। इस अवस्था में फेफड़े में खून का संचार अच्छा होने लगता है। इससे फेफड़े के फ्लूड इधर-उधर होने से ऑक्सीजन अच्छी पहुंचती है। ऑक्सीजन का स्तर भी कम नहीं होता, जिससे मरीजों को राहत मिलती है।
इस तरह होता है फायदा
प्रोन पोजीशन एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) में इस्तेमाल होता है। सीनियर पीडियाट्रिशियन डॉ. शारजा फुलझेले व फिजिशियन डॉ. सुरेश चंद्रवंशी के अनुसार एआरडीएस होने के कारण फेफड़े के निचले हिस्से में पानी भर जाता है। सामान्य अवस्था यानी पीठ के बल लेटाने से फेफड़े के निचले हिस्से का फ्लूड में खून तो चला जाता है, लेकिन पानी के कारण ऑक्सीजन व कार्बन डाइआक्साइड को निकालने में दिक्कत होती है। ऐसी स्थिति में सही ऑक्सीजनेशन नहीं होने पर प्रोन वेंटिलेशन देने से लाभ मिलता है।