दोनों तस्करों के कब्जे से सात सेमी ऑटोमेटिक पिस्तौल32 बोर और 13 मैगजीन जब्त की गई है। एसटीएफ ने इस काले कारोबार में इनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले तीन मोबाइल फोन भी जब्त किए हैं।
मिर्जापुर । अब तक ड्रग और आर्म्स स्मगलिंग का कारोबार चोरी-छिपे किया जा रहा था. अब यह धंधा खुलेआम सोशल मीडिया के जरिए होने लगा है। इसका खुलासा खुद इस मामले में गिरफ्तार हथियारतस्करों ने ही किया है। गिरफ्तार हथियार तस्कर पहलवान हैं. पहलवानी के वीडियो भी अक्सर फेसबुक पर अपलोड करके लोगों का ध्यानाकर्षण अपनी ओर करते रहते हैं. असल में इनका काला कारोबार फेसबुक के जरिए हथियार तस्करी का ही था।

हथियार तस्करी से जुड़े इन तमाम तथ्यों की पुष्टि खुद यूपी एसटीएफ चीफ अमिताभ यश ने की। फेसबुक पर खुलेआम यह खतरनाक धंधा कर रहे और गिरफ्तार हथियार तस्करों ने और भी तमाम राज खोले हैं. जिन पर एसटीएफ की टीम आगे जांच में जुटी है। गिरफ्तार हथियार तस्करों का नाम देवेश्वर शुक्ला और अंबुज है. देवेश्वर मूल रूप से यशवंत सिंह का पुरा, थाना पडरी जिला मिर्जापुर और अंबुज बसुहरा थाना हलिया, मिर्जापुर का रहने वाला है।
तस्करों के पास से मिले ये हथियार
इनके कब्जे से सात सेमी ऑटोमेटिक पिस्तौल 32 बोर और 13 मैगजीन जब्त की गई है।एसटीएफ ने इस काले कारोबार में इनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले तीन मोबाइल फोन भी जब्त किए हैं। इंटर-स्टेट हथियार तस्कर इस गैंग के पर्दाफाश के लिए एसटीएफ इंस्पेक्टर वाराणसी अनिल कुमार सिंह के नेतृत्व में विशेष टीम गठित की गई थी। टीम ने 25 अक्टूबर 2022 को इन हथियार तस्करों को थाना सारनाथ इलाके में काबू कर लिया। पूछताछ में दोनों ने कबूला कि वे पहलवानी करते हैं। अक्सर यह दोनों तस्कर अखाड़े में जोर आजमाइश की वीडियो फेसबुक पर अपलोड करते रहते थे, लेकिन इसमें इन्हें कुछ कमाई नहीं थी। लिहाजा फेसबुक पर ही दोनों कमाई का जरिया भी तलाशते रहते थे।
एक हथियार के बदले मिलते थे सात हजार रुपए
इसी बीच फेसबुक पर ही इनका संपर्क इसी साल जुलाई महीने में विपिन दुबे से हो गया। विपिन दुबे खानपुर, थाना मेजा, जिला प्रयागराज का रहने वाला है। उसने जब इन दोनों का मजबूत पहलवानी डील-डौल देखा तो इन्हें बिना ज्यादा कुछ करे-धरे खाने कमाने का रास्ता सुझा दिया। यह रास्ता था मध्य प्रदेश राज्य के बडवानी इलाके से घातक हथियार चोरी छिपे लाना। इन हथियारों को दोनों आरोपी विपिन दुबे के हवाले कर देते थे, जिसके बदले में इन्हें प्रति हथियार सात हजार रुपए की कमाई हो जाती थी। गिरफ्तार हथियार तस्करों ने कबूला है कि वह लोग विपिन दुबे द्वारा बडवानी में बताए गए एक सरदार जी से हथियारों की खेप ले आते थे. वो सरदार कौन था? इसका सही पता ठिकाना किंगपिन विपिन दुबे के ही पास है।

गिरफ्तार तस्कर सिर्फ मोहरे, असली मुजरिम फरार
विपिन दुबे और किसी अज्ञात सरदार की तलाश में एसटीएफ टीमें अलग-अलग इलाकों में छापेमारी रही हैं, क्योंकि असली मुजरिम तो वही हैं. गिरफ्तार दोनों पहलवान तो सिर्फ मोहरे के बतौर या कहिए कि ‘करियर’ के रूप में काम कर रहे थे. गिरफ्तार दोनों तस्करों को इससे ज्यादा कुछ नहीं मालूम है। यहां बताना जरूरी है कि मध्य प्रदेश, बिहार के कई ऐसे बदनाम इलाके हैं। जहां अवैध असलहे का निर्माण बड़े पैमाने पर किया जाता है। इन हथियारों में एके-56 एके-47 से लेकर तमंचा, बंदूक, राइफल तक, मतलब हर वैरायटी-किस्म और बोर का हथियार शामिल हैं. इन बदनाम इलाकों में हथियार पहले रकम पहुंच जाने के बाद यानी एडवांस ऑर्डर पर तैयार किया जाता है।
हथियारों की बिक्री पर मिलती है भारी-भरकम रकम
यूपी एसटीएफ, दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल औप क्राइम ब्रांच के कई अधिकारियों से इस बारे में टीवी9 भारतवर्ष से बात की. उनके मुताबिक, “जिन दूर दराज इलाकों में इन अवैध असलहों का निर्माण होता है. वहां इनका इस्तेमाल न के बराबर किया जाता है। लिहाजा उन छोटी दूर दराज की जगहों पर बनाए गए इन हथियारों की तस्करी करके भारी भरकम रकम प्राप्त की जाती है. यह सब इन हथियरों की तस्करी के जरिए ही संभव है।”
“अवैध हथियार चाहे बिहार में बना हो या फिर मध्य प्रदेश में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. इनकी निर्माण क्वालिटी कमोबेश एक सी ही होती है। यहां यह हथियार सस्ते दाम पर मिल जाते हैं। इन राज्यों से हथियारों को तस्करी के जरिए किसी भी तरह से यूपी, दिल्ली, उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में पहुंचाने की कोशिश होती है, क्योंकि इन राज्यों में ऐसे अवैध असलहों की खपत बहुत ज्यादा है।”
पूर्व एनकाउंटर स्पेशलिस्ट ने दी जानकारी
यह अवैध असलहे अगर देश ही राजधानी दिल्ली में पहुंच गए तब तो इनकी कीमत ही डबल से भी ऊपर निकल जाती है. इस बारे में बुधवार को टीवी9 भारतवर्ष ने बात की दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के रिटायर्ड डीसीपी और पूर्व एनकाउंटर स्पेशलिस्ट एल एन राव से. एलएन राव के मुताबिक, “दरअसल, दिल्ली में इन हथियारों की खेप पहुंचते ही इनके ऊपर दिल्ली में निर्मित की फर्जी मुहर या स्टीकर अवैध हथियार तस्कर चिपका देते हैं. दिल्ली चूंकि देश की राजधानी है. इसलिए यहां बने ऐसे नाजायज हथियारों को विश्वसनीय माना जाता है. विश्वसनीयता बढ़ने के चलते इनकी कीमत में भी, दो से तीन गुना इजाफा हो जाता है.” तो क्या दिल्ली देश में इस तरह के अवैध हथियारों की सबसे बड़ी मंडी बन चुकी है?
दूर-दराज के इलाकों में होता है निर्माण
पूछे जाने पर दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच में डीसीपी स्तर के एक अधिकारी ने कहा कि नहीं ऐसा नहीं है. दिल्ली अवैध हथियारों की मंडी बन ही नहीं सकती है। दरअसल, देश की राजधानी होने के चलते बस यहां से ऐसे अवैध हथियारों को खरीदने का चस्का लगा हुआ हो सकता है गुंडों में. यह दिखाने के लिए कि उनके पास तो दिल्ली में निर्मित हथियार हैं, जो कभी भी धोखा नहीं देते. होता असल में इसके एकदम विपरीत है। दिल्ली में अवैध हथियार निर्माण का अड्डा बनाकर उसे चला पाना आसान नहीं है। इस तरह के नाजायज हथियारों का निर्माण सिर्फ छोटे शहरों या फिर देश के दूर-दराज के कुछ गांवों में चोरी छिपे कर पाना ही संभव है, जहां पुलिस की पहुंच आसानी से न हो।